बेजुबान की भाषा
बेजुबान की भाषा पिंजरे से ही क्यों समझ आती है।
एक बंदर की रोजी से भी किसी के पेट में रोटी जाती है।
खुली आंखों से दिख रही जब ये हकीकत है।
तो आसानी से समझ क्यों नहीं आती है ।।
तुम्हारी आबादी इनकी क्यों बरबादी है।
इनके बिन तुम्हारी जिंदगी भी तो आधी है।
खुली आंखों से दिख रही जब ये हकीकत है।
तो आसानी से समझ क्यों नहीं आती है ।।
इनका घर क्या तेरी कमाई चलाती है।
शैतानियो से इनकी तेरी जेब कमाती है।
खुली आंखों से दिख रही जब ये हकीकत है।
तो आसानी से समझ क्यों नहीं आती है ।।
इनकी दोस्ती बहुत कुछ दिलाती है।
तू रह सकता बन इनका साथी है।
खुली आंखों से दिख रही जब ये हकीकत है।
तो आसानी से समझ क्यों नहीं आती है ।।
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